POEM
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वो रूठे हैं इस कदर मनायें कैसे।
जज़्बात अपने दिल के दिखाएँ कैसे।
नर्म एहसासों की सिहरन कह रही है पास आ जाओ।
सिमट जाओ मुझमें और दिल में समां जाओ।
देखो लौट आओ ना रूठो हमसे।
बस रह गया है तुम्हारा इंतज़ार कब से।
इतनी भी क्या तकरार हमसे ।
तेरे इंतज़ार में हो गया है दिल बेकरार कब से।
लड़ना मुझसे झगड़ना मुझसे पर कभी न दूर रहना मुझसे।
एक बार फिर ढलती शाम में बढ़ रहा है खुमार कब से।
अब तुम्ही मीत हो मेरे दिल की सदायें समझो।
मेरे दिल की ख़ामोशी मेरी वफायें समझो
अब क्या कहूँ अपने दिल की सदायें उनसे।
वो रूठे हैं इस कदर मनायें कैसे।
जज़्बात अपने दिल के दिखाये कैसे।
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